Wednesday, June 30, 2010

विषांक का सम्मोहन

खाली दिमाग शैतान का घर. अपने विषांक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उसके मन में शैतानियत जाग उठी. किसी को सम्मोहित करनी इच्छा से इधर उधर देख ही रहा था, कोई चूहा बिल्ली भी दिखाई नहीं दिया. वेदाचार्य के तिलिस्मी किले में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता.
सिल्लू...हाँ ये सही रहेगा, मन में निश्चय करके सिल्लू को फ़ोन करके विषांक ने उसे ही बुला लिया.
सिल्लू, विषांक का परमभक्त अबिलम्ब हाज़िर हुआ.
विषांक : सिल्लू आज में तुझे सम्मोहित करूँगा, तू आज मुझसे सिर्फ सच बोलेगा.
सिल्लू: नहीं. मुझे छोड़ दो.(मैंने कल विषांक का चॉकलेट निकाल लिया था, कहीं येही न पूछ ले).
लेकिन विषांक, सिल्लू से permission नहीं ले रहा था, वो सिर्फ उसको बता रहा था की वो सिल्लू को सम्मोहित करने जा रहा है.
और आनन फानन में सिल्लू सम्मोहित हो चूका था.
विषांक: सिल्लू ये बता ये राज अंकल कौन है.
सिल्लू: नागराज.
हैं..इसको कैसे पता.
सिल्लू अपनी बात जारी रखते हुए....और भारती आंटी ध्रुव है.
विषांक आसमान से गिरा, ये राज़ तो उसको भी नहीं पता. सिल्लू तो विषांक से ज्यादा जानता है.
विषांक: तुझे कैसे मालूम .
सिल्लू: ये तो कोई बच्चा भी बता सकता है. देखा नहीं, दोनों का हेयर स्टाइल same है.
विषांक ने अपना सर पिट लिया और आगे से किसीको सम्मोहित न करने की कसम खा ली.

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